Wednesday, January 30, 2013

गहरी रात की चादर


गहरी रात की चादर
ऐसे ढक गयी मुझको
जैसे सर्दी में रजाई ने
घेर हो मुझको !

उदास मनन उदास आंखों
की कहानी
याद न कर याद न आ
फिर भी आँखों के
किसी कोने से झाकता
है वो !

हर सुबह
हर शाम
कब खोया था
कब चला गया था
पता नहीं लगा
कब भूलेगा
कब भुलाएगा
कौन जाने
जाना तो मुझे भी था
उसकी पल्कॊन की कोरों में
कब पहुचीं कब वहां घर कर गयी
कौन समझे
समझना तो उसे भी था
पर उसके दिल में भी एक दिमाग था

जो न समझता था
न जानता था!


गहरी रात की चादर यूं घेरे है मुझको !