Wednesday, July 10, 2013

ANDAAZ

वो ठंडी हवा के झोंके !
वो उड़ते हुए पर्दे !
FM  RADIO  पर गुनगुनाते
गुरु दत्त के नगमें !
बीच बीच में आती बादलों के
गरजने की आवाज़ ,
पानी पानी की टप टप की
आवाज़ कभी आती कभी बंद हो जाती !
कहीं कोई खुल्ला दरवाज़ा हवा से
जोर से बजता ,
याद आता अचानक छत पर कुछ है तो
नहीं जो भीग जायेगा !

फिर वापस आँखें किताब पर गडा देती हूँ
"मंटो की अमर कहानियाँ"
यह कहानियाँ भी अजीब ही होती है  !
एक बार शुरू हो जायें तो बीच में छोडी भी नहीं जाती
बिलकुल जीवन की तरह ,
एक बार दुनिया में आजाओ
तो जिंदगी की आदत से हो जाती है
चाहे वोह गले से लगाये या न लगाये !

यह फुर्सत, यह लम्हे रूक  जाये अगर
सोचूँ में अपनी गोल बेंत की चेयर  पर,
पास रखा BAMBOO का पौधा मुरझा गया है
पता नहीं क्यों?
BALCONY से झांकते पीले बल्ब चमक रहे थे
जैसे बारिश के पानी में आँखें धुल कर साफ़ हो गए हों !

ऐसी कोई बारिश बनानी  चाहेए
जो देखने का अंदाज़ ही बदल दे !
ऐसी  कोई महक बननी चाहेए
जो भीतर तक समा जाये !
ऐसी कोई रौशनी हो
जो अन्धकार को चीर दे !
ऐसी कोई आवाज़ हो
जो सुनाई भी दे !