Tuesday, February 19, 2013

Chand ka mooh tedha hai: चलते हुए !

Chand ka mooh tedha hai: चलते हुए !: वो हिलती हुई ट्रेन में अहसास हुआ की पीछे कुछ छुट सा गया था   दिए की लौ सी झिलमिल चलती ट्रेन ने कुछ याद दिलाया है  वो छुटते खेत  वो ...

चलते हुए !


वो हिलती हुई ट्रेन में अहसास हुआ की पीछे कुछ छुट सा गया था  
दिए की लौ सी झिलमिल चलती ट्रेन ने कुछ याद दिलाया है 
वो छुटते खेत 
वो दौड़ते पेड़ 
जैसे माँ से जिद कर रहे हो हमें बाहर जाने दो न !
वो लाल सफ़ेद डिस्टेंपर से सजे घर 
वो खुली छत, वो खुला आँगन 
कहती है कहानी उस बिंदास अंदाज़ की 
जो मेट्रो सिटी में कहाँ मिलती है 
क्या अंदाज़ बदलने से कोई बिंदास जो जाता है?

वो एक अकेला सा घर उस खेत में  
उसमें कुछ लोग रहते होंगे 
ए काश वोह भरे हों यादॊ और बेबाक बातों से 
वोह छोटा सा सरसों के खेत का टुकड़ा 
किसी ने बड़े यतन से बचाया होगा 
कंक्रीट जंगल के ठेकेदारों से 

और वो आया एक छोटा सा स्टेशन  
जी में अता था की अपनी मंजिल आ जाये जल्दी ही 
पर जब यह छोटे छोटे सुन्दर पढ़ाव आते है 
तो जी बदल जाता है 
कि सफ़र यूहीं चलता रहे 
ऐसा ही कुछ होता है जीवन में 
मंजिल की चाह नहीं रह जाती 
न ही उसकी याद आती है 
जीने मरने की आरजून से परे 
जब कोई ख़ुशी जैसा छोटा स्टेशन अता है 
तो सफ़र भी अच्छा लगता है 

एक ठहरा हुआ घर 
एक ठहरा हुआ खेत  
झिलमिल चलती ट्रेन सी ज़िन्दगी 
में सभी चले जा रहे है!



Thursday, February 7, 2013

मंदिर में दूध चढ़ाने  जो मै गया तो अहसास हुआ कि
दूसरों की ख़ुशी के लिए भूके  को और मार आया !

Monday, February 4, 2013


सर्दी की  बारिश का मज़ा ही कुछ और है,
बहती नाक कान में मिर्ची 
गले में खराश 
फिर भी निर्मल जल की बूँदें 
ह्रदय को ठंडक दे जाती 
इस जुकाम ने नैनों से कितनी बूंदे टपकाई 
पर झम झम तेज़ आवाज़ से गिरते  पानी 
को देखे बिना नज़रें न भीगी !
गरम हथेली पर जब पानी की बूँद पडी  
तो जाना  पानी कितना  निश्चल है 
सबको एक सामान छलता  है !

कपूलों की ठंडक से जाना 
सर्दी की बारिश की रौनक ही कुछ और है 
सर्दी की बारिश की मज़ा ही कुछ और है !